किसानों के द्वारा जारी आंदोलन के सात महीने हो गए मगर हैरानी की बात ये है कि हमारे द्वारा चुनी हुई सरकार किसानों से बात करने की बजाए उन्हें आतंकवादी देश द्रोही न जाने क्या क्या कह कर आंदोलन को कुचलने की कोशिश करती रह गई।जो लोग किसानों के आंदोलन लो गलत समझते है उन्हें एक बात हमेसा याद रखना चाहिए कि सत्ता के द्वारा जब जब किसानों पर कानून थोपा गया है तब तब हमारे देश के किसानों ने विरोध किया है। अगर किसानों के लिए कानून बनाने ही है तो किसानों से बात कर के कानून बनाया जाए।
नील विद्रोह किसानों द्वारा किया गया एक आन्दोलन था जो बंगाल के किसानों द्वारा सन् 1859 में किया गया था। किन्तु इस विद्रोह की जड़ें आधी शताब्दी पुरानी थीं, अर्थात् नील कृषि अधिनियम (indigo plantation act) का पारित होना। इस विद्रोह के आरम्भ में निल नदी के किसानों ने 1859 के फरवरी-मार्च में नील का एक भी बीज बोने से मना कर दिया। यह आन्दोलन पूरी तरह से अहिंसक था तथा इसमें भारत के हिन्दू और मुसलमान दोनो ने बराबर का हिस्सा लिया। सन् 186० तक बंगाल में नील की खेती लगभग ठप पड़ गई। सन् 186० में इसके लिए एक आयोग गठित किया गया।
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